सोमवार, 30 मई 2011

राहु शनि का षडाष्टक

"राहू शनि का षडाष्टक बनता,लड़े विरोधी बाते सुनता,
अगर शनि मार्गी होवे राहू दुःख दे रात को रोवे"
राहू को आपस में लड़ाने वाला ग्रह कहा जाता है,दो लोगों को लड़ा कर यह दूर बैठ कर तमासा देखने का शौक़ीन होता है.अक्सर देखा होगा कि जब कभी खेल कूद होते है तो राहू मनोरंजन और शनि कार्य यानी मनोरंजन के कार्य लेकिन आपस में षडाष्टक बनाकर बैठे हो तो खेल खतरनाक हो जाते है,जैसे किसी एक व्यक्ति को भ्रम दे दिया कि अमुक व्यक्ति तुम्हे मारना चाहता है और तुम बचके रहना यह कार्य राहू कर जाता है,जिससे राहू ने कहा है वह भ्रम में चला जाता है और जिस व्यक्ति के लिए कहा है उससे हमेशा अपने को सतर्क रहकर चलने लगता है,जैसे ही कोई मौक़ा मिलता है अपने दुश्मन को समाप्त करने के लिए घात लगाकर हमला करता है,सामने वाले को पता भी नहीं होता है कि उसके द्वारा कोई गलती की गयी है लेकिन राहू अपनी खुंश निकालने के लिए ही उसे घात लगाकर मरवाने की कोशिश करता है.जब वह मारा जाता है तो राहू मरने वाले और मारने वाले को बता भी देता है कि मरने वाले को मारने वाले ने केवल कनफ्यूजन की बजह से मारा है,इसकी पुष्टि के लिए राहू केतु का सहारा लेता है और किसी प्रकार जासूसी मारने वाले और मरने वाले के प्रति कर देता है जिससे मरने वाला तो मर ही गया लेकिन क़ानून मारने वाले को भी मार देता है. लेकिन शनि के वक्री होने पर व्यक्ति के अन्दर बुद्धि से लड़ने का असर पैदा होता है वह जान से मारने की बात नहीं करता है बुद्धि से केवल जैसे ही राहू अपनी हरकत को करता है वह खुद राहू पर नजर रखना चालू कर देता है और राहू की गलती को पकड़ कर केतु की सहायता से राहू को प्रताणित कर देता है.जैसे राहू ने भ्रम दिया कि अमुक व्यक्ति को अमुक बीमारी है,और वह उस बीमारी से मर भी सकता है,वक्री शनि ने अपनी बुद्धि का सहारा लिया और केतु यानी बीमारी को परखने वाले साधनों का प्रयोग किया और परख लिया कि अमुक बीमारी है और अमुक दवाई से ठीक हो जायेगी,उसे साधन दे दिया भ्रम वाला राहू अपने ही कारण से मारा गया.इसी प्रकार से यह राहू ज्योतिष के रूप में भ्रम देने के लिए सामने आता है जैसे कोई पूंछता है कि वह अमुक समस्या से अमुक समय से परेशान है,वक्री शनि अपनी बुद्धि का सहारा लेकर और अपनी गणना को करने के बाद फ़ौरन उस समस्या का निराकरण करने के लिए सामने आता है,उस भ्रम को शांत करने के लिए कोई न कोई तत्व वाला उपाय देता है और भ्रम निकल जाता है अथवा समय का विधान और पीछे की काल गणना करने के बाद पूंछने वाले को पीछे की बाते बता कर आगे का हाल बता देता है सामने वाले का भ्रम निकल जाता है और राहू का अंत हो जाता है,उदाहरण के लिए एक फोन आता है कि अमुक समय में एक महिला की सोने की चैन खो गयी है,काल गणना की जाती है,राहू शुक्र पर हावी है,केतु सूर्य के साथ है,तीसरे भाव में केतु और सूर्य की युति मिलती है,यानी घटना घर के बाहर छोटी यात्रा में होती है,सवाल पूंछने वाले को जबाब दिया जाता है कि क्या घटना घर से बाहर किसी छोटी यात्रा में हुयी थी,सामने वाले का जबाब होता है,कि वह स्त्री उस समय किराए की टेक्सी में यात्रा कर रही थी,फिर सवाल करने वाले से पूंछा जाता है कि उस टेक्सी में कोई नीले रंग का पहिनावा पहिने व्यक्ति था,सामने वाला जबाब देता है कि वही टेक्सी वाला ही नीले रंग का कपड़ा पहिने था,राहू का प्रभाव मंगल पर भी है यानी नवे भाव का राहू लगन के मंगल पर भी दे रहा है,सवाल को पूंछने वाले से कहा जाता है कि रास्ते में कही खाने पीने वाले स्थान पर रुका गया था,सामने वाला जबाब देता है कि हाँ एक जगह पर चाय पकौड़ी खाने पीने के लिए रुका गया था,दूसरे लगन से दूसरे भाव में चन्द्रमा के होने पर पूंछा जाता है कि पानी के लिए कोई बोतल आदि खरीदी गयी थी,जबाब मिलता है कि खरीदी गयी थी,इतना कथन सुनने के बाद पूंछने वाले को बताने वाले पर भरोसा हो जाता है कि वह सब कुछ सही सही बता रहा है,अब चौथे भाव में विराजमान वक्री शनि अपनी युति धन भाव में विराजमान चन्द्रमा पर देता है,यानी बताने वाले के दिमाग में लोभ धन के लिए पैदा होता है,वह पूंछने वाले से कहता है कि अगर खर्चा किया जाए तो चैन का पता बताया जा सकता है,पूंछने वाले के दिमाग में भी चैन के प्रति लोभ तो है ही,कि वह उसके पास से चली गयी है,उसे अगर कुछ खर्च करने के बाद मिल जाती है तो उसे कोई हर्ज नहीं है,पूंछने वाले और बताने वाले के बीच में सौदा तय होता है और बताने वाला सप्तम गुरु का सहारा लेकर कह देता है कि चैन उसी टेक्सी के अन्दर गिरी है,टेक्सी वाले से बात की जाती है,वह पहले तो टेक्सी को देखने की बात करता है और थोड़ी देर में पता लग जाता है कि सीट के नीचे वह चैन पडी मिल गयी है,इस तरह से एक ज्योतिषी अपनी बुद्धि का सहारा लेकर और वक्री शनि की ताकत से राहू का प्रभाव तोड़ देता है.वही शनि अगर मार्गी होता तो ज्योतिषी को भी राहू पछाड़ देता और ज्योतिषी उसी मंगल के लिए कहता कि जाकर पुलिस में रिपोर्ट करवाओ,अथवा पूंछने वाले को राहू शुक्र का उलटा अर्थ दे सकता था कि जिस स्त्री की चैन गयी है वह नवे भाव के राहू शुक्र यानी हवाई यात्रा,तीसरे भाव का केतु सूर्य यानी यात्रा के पहले की जाने वाली चैकिंग में लगन के मंगल से शासित चौथा मार्गी शनि किसी अवैध्य सामान के कारण परेशान हुआ.

शुक्रवार, 27 मई 2011

राहु की करामात

राहु का असर बहुत ही असरकारक जब और हो जाता है जब राहु का स्थान सप्तम स्थान में हो जाता है। अगर वृश्चिक लगन की कुंडली हो तो जातक के लगन में केतु होगा और सप्तम में राहु का निवास होगा वह भी धन और कुटुम्ब की राशि वृष में। सप्तम राहु का सीधा असर जातक के तीसरे भाव में और उस भाव मे विराजमान ग्रहों की शक्ति को अपने अन्दर अवशोषित करने के बाद राहु का उल्टा प्रभाव लगन के केतु पर आयेगा और उसके बाद राहु का प्रभाव जातक के ग्यारहवे भाव और उससे सम्बन्धित कारकों पर भी आयेगा,सबसे खतरनाक प्रभाव जातक के नवें भाव पर होगा जो राहु के कारण दिक्कत देने वाला माना जायेगा। सप्तम के राहु का असर जातक के तीसरे भाव मे जाने से पिता और पिता की कारक वस्तुओं में जायेगा जिससे जातक के लिये एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जायेगी कि पिता के पास और पिता की जायदाद के कारण उसे कोई भविष्य में परेशानी नही होगी,लेकिन पिता अपने ही कारणो से परेशान होने वाला होगा,कारण पिता के अन्दर अपने ऊपर की आफ़ते भी कम दिक्कत देने वाली नही होंगी,सप्तम राहु अगर वृष राशि का है तो जातक की माता और ननिहाल खान्दान को आफ़ते देने के लिये भी काफ़ी है,माता पर आफ़तेओं का समय राहु का समय आते ही शुरु होने की बात भी कही जाती है या तो माता जातक के साथ सातवें साल के शुरु में ही परलोक सिधार जाती है या जातक के जीवन से दूर रहने के लिये वेवश हो जाती है। पिता के सामने केवल अस्पताली कारण ही सामने होते है और पिता का मन भी चलायमान होकर या तो वह दूसरी माता को सामने लाता है जिससे जातक और जातक के साथ उसके बडे भाई बहिन के लिये वह माता आफ़तों का कारक बनकर घर के सुख को दूर करने वाली होती है। अगर जातक के बडी बहिन होती है तो दूसरी माता को नही रहने देती है और बडी बहिन नही होती है तो जातक अपने पिता से दूर चला जाता है। सप्तम राहु पिता के भाव से दसवे भाव में होता है और पिता के लिये कार्य के लिये विदेश मे जाना पडता है,जातक का जन्म केतु के लगन में होने के कारण ननिहाल के अस्पताल में हुआ होता है,साथ ही बचपन की उम्र को नाना परिवार ही शुरु करता है। उम्र के साथ जातक के नाना परिवार का भी समाप्त होने का असर देखा गया है लेकिन जातक अगर नाना परिवार से दूरिया बना लेता है तो नाना परिवार का रहना माना भी जाता है। राहु को मंगल के द्वारा कन्ट्रोल किया जाता है अगर मंगल का सीधा प्रभाव राहु पर होता है तो जातक के जीवन को सही दिशा में ले जाया जा सकता है। अगर मंगल का असर किसी प्रकार से दूर है या गोचर से भी मंगल राहु को दिशा नही दे पाता है तो यह सप्तम का राहु बहुत ही खतरनाक हो जाता है साथ ही उन रिस्तों की तरफ़ ले जाता है जो रिस्ते हमेशा के लिये जातक को चिन्ता देने वाले होते है और जातक अपने ही परिवार को दूर करने के बाद भटकने के लिये अपनी स्थिति को बनाने को बेवश हो जाता है। धन की राशि में राहु के होने से जातक के लिये स्त्रियां केवल धन के लिये ही प्रीत बनाती है,अगर यही राहु मिथुन राशि का होता है तो जातक की हिम्मत की शैली से प्रभावित होकर स्त्रिया जातक के साथ चलने वाली होती है कर्क का राहु जातक के लिये स्त्रियों के प्रति भावनात्मक रूप से जुडने और दूर करने के लिये माना जाता है सिंह का राहु जातक के लिये राजनीतिक कारणो से भी और सरकारी ओहदे के लिये और प्रभाव के लिये भी माना जा सकता है,कन्या का राहु जातक के कार्य करने के कारण और जातक के द्वारा सेवा वाले भाव का सहारा लेकर लोग उसकी तरफ़ आकर्षित होते है,तुला राशि का राहु सीधा ही जातक के पूर्वजों की मर्यादा को जीवन साथी के द्वारा समाप्त करने के लिये माना जाता है,वृश्चिक का राहु जातक के पिता और पिता के कार्यों को बाधित करने के लिये माना जाता है,धनु का राहु जातक को आजीवन भटकाने और कानूनी पचडे में ले जाने के लिये भी माना जाता है।

गुरुवार, 26 मई 2011

राहु के उपाय

राहु अपने असर से जातक के जीवन में अपने असर से अक्सर मानसिक शांति को भंग करता है,इसके लिये अधिक तर चांदी के उपाय ही कारगर सिद्ध होते देखे गये है। चांदी का छल्ला पहिनना चांदी का टुकडा जमीन में दबाना घर में रखना चांदी को किसी न किसी रूप में अपने पास रखना आदि। सफ़ाई कर्मचारी को लाल मसूर की दाल दान में देने से सफ़ाई कर्मचारी की उन्नति के साथ साथ खुद की भी उन्नति होने लगती है। बीमार आदमी के बराबर जौ या गेंहूं तौल कर उसे बहते पानी में बहान से भी राहु के फ़लो में फ़ायदा होता है। रात को सोते समय पलंग के सिरहाने जौ रखें और सुबह को मांगने वालों को दान में देने से भी मानसिक कष्टों में फ़ायदा मिलता है। सरकार के साथ व्यापार और पिता के साथ मतभेदों में साथ चलने वाले व्यापारिक समस्याओं के लिये जातक अपने बराबर के लकडी या कोयले पानी में बहा देते है तो भी फ़ायदा होने लगता है। ग्रहों के पैंतीस साल के दौर में राहु के छ साल है,सरस्वती राहु की अधिष्ठात्री देवी है,रांगा (सीसा) इसकी धातु है और गोमेद इसका रत्न है। जौ सरसों मूली राहु के भोज्य पदार्थ है,पुरानी बातें और कल्पना करना राहु के गुण है। बिजली के यंत्र मशीने नीला रंग शौचालय चिपनी और पेंट पाजामा राहु के अधिकार में आते है। राहु सास स्वसुर और विधवा माता के कारक है।

राहु के सामान्य उपचारों सरस्वती की पूजा करना,बिजली से चलने वाले उपकरण स्टील के बर्तन नीले रंग के कपडे किसी फ़्री मे लेने नही चाहिये। कन्यादान करने से भी राहु खुश होता है गोमेद को पहिना जा सकता है,तम्बाकू के सेवन से भी राहु खराब हो जाता है और सूर्य के रूप में शरीर में स्थिति आंखों और हड्डी को खराब करने का कार्य करता है। अन्य जानकारी के लिये आप लिख सकते है,या अपने प्रश्न को भेज सकते है। ईमेल astrobhadauria@gmail.com और बेव साइट www.astrobhadauria.com है.

गुरुवार, 19 मई 2011

राहु का तर्पण क्या है?

ग्रहों में राहु और केतु का स्थान छाया ग्रह के रूप में जाना जाता है। यह दोनो ग्रह लालकिताब के अनुसार शनि के चेले यानी शिष्य कहे गये है और माना जाता है कि शनि रूपी सांप का राहु मुँह है और केतु को शनि रूपी सांप की पूँछ यानी Tail कहा जाता है। लेकिन पाश्चात्य ज्योतिष में यह दोनो ही चन्द्रमा के दोनो ध्रुवो के रूप में जाने जाते है यानी उत्तरी ध्रुव को राहु और दक्षिणी ध्रुव को केतु के रूप में माना जाता है। इस बात को मान्यता तो देनी पडेगी कि राहु और केतु चन्द्रमा से अपना सम्बन्ध रखते है। इस बात के लिये राहु का समय यानी अश्विन के समय में जो पितर पक्ष कहा जाता है में पितरों के प्रति दान और पुण्य के साथ ब्राह्मण भोजन को मुख्य माना जाता है जो भी अपने पूर्वजों पर विश्वास करते है और अपने पितरों के प्रति मान्यता रखते है,अपने कुल की मर्यादा और अपने खून की मान्यता को जिन्दा रखना चाहते है वे अपने पितरों के प्रति जरूरी मान्यता को लेकर चलते है। राहु को उर्दू शब्द के अनुसार रूह की श्रेणी में भी लाया जाता है,यानी व्यक्ति के पितरों की रूह उनके साथ चलती है और जातक के अच्छे या बुरे वक्त पर अपनी अपनी ताकत के अनुसार सहायता करती है। जब सूर्य गुरु और राहु की युति को नाडी ज्योतिष से पढा जाता है तो कहा जाता है कि गुरु से जीव यानी जातक सूर्य से आत्मा के रूप में राहु यानी पूर्वजों के रूप में आया है,यानी पूर्व का पूर्वज ही जातक के रूप में जन्म लेकर परिवार में आया है। राहु का रूप मानसिक तर्पण से भी माना जाता है और श्रद्धा के रूप में भी देखा जाता है,भावनाओं को समर्पित करने के लिये भी पितरों के लिये ब्राह्मणो को भोजन करवाया जाता है लोगों के लिये ठहरने के लिये धर्मशाला और पानी के लिये कुये तालाब और प्याऊ आदि का बन्दोबस्त करवाना भी इसी राहु की श्रेणी में आता है,जहां पूर्वजों के नाम से कोई कार्य किया जाये वह राहु की श्रेणी में आता है।
पितरों की मान्यता को आजकल के जमाने में बहुत कम ही लोग जानते है,मुश्लिम समुदाय में पितरों के लिये ताजिये निकालने का रूप देखा जाता है हिन्दू में कनागत के रूप में पितरों को देखा जाता है और अन्य धर्मों के अनुसार भी पितरों की अपने अपने अनुसार ही मान्यता का समय मिलना पाया जाता है। कहा भी जाता है कि पूर्वजों की पूजा से ही सभी धर्मों का निकास हुआ है,और उन्ही धर्मों का अधिक विकास होता है जो पूर्वजों के नाम से पूजे जाते है।
जब कुंडली में राहु अपने अनुसार फ़लदायी होता है तो वह अक्सर वृश्चिक का राहु शमशानी आत्माओं के रूप मे देखा जाता है मीन का राहु आसमानी शक्तियों के रूप में माना जाता है,कर्क का राहु घर के अन्दर की आत्मा का रूप बताती है,कुम्भ का राहु पिता के साथ चलने वाली पुराने कुटुम्ब की आत्मा के रूप में माना जाता है कन्या का राहु बीमारी और आफ़त को देने वाला माना जाता है,लगन का राहु अपने में ही मस्त रहने वाला माना जाता है तो मंगल के साथ राहु खून के अन्दर उत्तेजना देने वाला माना जाता है यह भाव अगर स्त्री की कुंडली में होता है तो वह पुरुष की तरफ़ आकर्षित होने की बात से मना नही कर सकती है और विजातीय सम्बन्ध अक्सर देखने में आते है,शुक्र के साथ राहु अगर पुरुष की कुंडली में होता है तो वह भी स्त्री के प्रेम प्रसंग के कारण अपने परिवार कुल आदि की मान्यता को छोड कर अपनी खुद की गृहस्थी को बसाने का काम करता है।
राहु के तर्पण के लिये समुद्र के किनारे के शिव स्थान को चुना जाता है और पुराणों के अनुसार दक्षिण दिशा को ही पितरों का स्थान माना जाता है अमावस्या का दिन ही पितरों के लिये अधिक मान्यता रखता है,शिवजी को जो दक्षिण दिशा में स्थापित होते है,उन्हे पितरों का स्वामी माना जाता है। समुद्र के किनारे के शिव स्थान में जाकर पहले स्नान करने के बाद उन्ही गीले कपडों में शिवजी के सामने अपने पितरों के रूप में मान्यता करने के बाद उन्हे नमस्कार किया जाता है,फ़िर किसी योग्य पंडित से शिवजी के प्रति पूर्वजों के नाम और गोत्र के नाम से दुग्धाभिषेख,जलाभिषेख,पंचामृत का अभिशेष आदि किया जाता है,तीर्थ स्थान में बैठकर पंडितों के द्वारा जौ चावल शहद तिल घी से हवन किया जाता है,पितरों के लिये समुद्र के किनारे के शिवलिंग जैसे एक एक पितर के लिये पिंड बनाये जाते है और कुल चौंतीस पिंड बनाकर उनके लिये अभिशेख करने के बाद वैदिक मन्त्रों से पूजा की जाती है,फ़िर पंडित ही उन्हे अलग अलग पितरों के नाम से चौंतीस पूर्वजों को जो दादा परदादा प्रपितामह आदि के रूप में होते है उनका सन्तुष्टि से समुद्र के पानी में प्रवाह कर दिया जाता है,गायों और कौओं को उदद के बने पकोडे खिलाये जाते है,चावल को दही के साथ मिलाकर गरीबों को भोजन करवाया जाता है,उसके बाद प्रसाद अगर परिजन साथ होते है तो उन्हे दे दिया जाता है और नही होते है तो डाक आदि के पते से भेज दिया जाता है। रामेश्वरम में यह कार्य आज के समय में लगभग बावन सौ रुपया में पूरा हो जाता है,जो लोग बाहर रहते है जिन्हे रामेश्वरम आने जाने या अमावस्या के दिन ही आने में दिक्कत होती है वे अपने अपने अनुसार अपने अपने पंडितों से यह तर्पण का कार्य करवा देते है,उसके लिये उन्हे अपने नाम अपने जीवन साथी का नाम पिता का नाम माता का नाम दादा का नाम दादी का नाम नाना का नाम नानी का नाम और उनके गोत्र का नाम भेजना पडता है साथ ही उनके निवास का पता मय टेलीफ़ोन नम्बर और पिनकोड के भेजना पडता है जहां उन्हे प्रसाद भेजा जाता है।

रविवार, 8 मई 2011

राहु तर्पण

राहु के लिये पहले ही बताया जा चुका है कि वह रूह से सम्बन्ध रखता है। अलग अलग भावों में जाकर अपने अपने स्थान का प्रभाव अपने अपने कारणों से प्रस्तुत करता है। हमेशा राहु खराब फ़ल ही दे यह कोई बात नही है राहु उत्तम से उत्तम फ़ल देने का कारक भी है। राहु का सीधा सम्बन्ध कैमिकल के रूप में है,पानी में मिलने पर वह दवाई के रूप में जान भी बचा सकता है और जहर बनकर मार भी सकता है,हवा में मिलकर वह आक्सीजन के रूप में प्राण भी बचा सकता है और कार्बन आक्साइड के रूप में जान ले भी सकता है,रसोई में गैस के रूप में भोजन भी पका कर खिलाने में सहायता करता है,तो बन्द कमरे में सिगडी रखने से या सुलगते कोयले रखने से मोनोक्साइड बनकर मृत्यु देने के लिये भी माना जा सकता है। ग्रहों में यह चन्द्र के साथ मिलावट करता है तो मानसिक रूप से कष्ट तो देगा ही और पहिचान के रूप में माता को इतनी चिन्ता देगा कि वह हमेशा किसी न किसी बात पर चिन्ता करती ही नजर आयेंगी,यह चिन्ता जातक को विरासत माताके खून से ही मिल जाती है और राहु अपनी गति से अपने अपने भाव के अनुसार दिन रात चिन्ता देने में कमी नही करता है। सूर्य के साथ राहु के आने में जातक के अन्दर नाम को प्रसारित करने की चिन्ता लगी रहती है पिता और सन्तान की उसे कतई फ़िक्र नही होती है,मंगल के साथ राहु के आने से खून के अन्दर उबाल ही बना रहता है और वह अगर उच्च के मंगल के साथ है तो हांकने में कमी नही होती है कार्य के लिये बहुत ही ऊंची छलांग लगाने के चक्कर मे वह अपनी हकीकत की जिन्दगी को भी भूल जाता है उच्च में हाई ब्लड प्रेसर और नीच में लो ब्लड प्रेसर की बीमारी भी देता है,बुध के साथ आने से वह गणना करने का मास्टर माना जाता है किसी भी बात को वह मीजान के रूप में अपनी शक्ति को प्रदर्शन करने के लिये भी अच्छी योग्यता को दिखाता है,लेकिन बुरे स्थान में जाने पर वह झूठ बोलने में भी पीछे नही रहता है,गुरु के साथ मिलने पर कब पता नही उसका दिमाग घूमे और वह या तो रक्षा करने वाले कारकों के अन्दर अपना नाम कमाले अथवा वह अपने गलत कामो के द्वारा जगत की हानि करने पर ही उतारू हो जाये,शुक्र के साथ मिलने पर वह कामुकता का भूत इतना भर दे कि उसे सिवाय स्त्री के और कुछ दिखाई ही नही दे,आदि बाते देखी जा सकती है।

सोमवार, 21 मार्च 2011

राहु तीसरा करे दिखावा

तीसरा राहु दिखावे के लिये माना जाता है,और यह दिखावा चाहे बोलने के लिये हो या अपने को प्रदर्शित करने के लिये हो जितना राहु बलवान होगा उतना ही दिखावा करने के लिये अपना बल देगा.राहु को आसमानी ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिये भी माना जाता है। राहु का राशि के अनुसार और राशि के स्वभाव के अनुसार प्रदर्शन के लिये तथा राहु पर अन्य ग्रहों के प्रभाव के द्वारा भी असरकारक माना जाता है। तीसरे भाव मे अगर मेष राशि है तो जातक के अन्दर अपने द्वारा लोगों से सम्पर्क बढाने के लिये उत्तम माना जाता है वह अगर किसी प्रकार की वस्तु को बेचने के लिये अपने प्रयासों को करता है तो वह लगातार सम्पर्क बढाता चला जायेगा और मल्टी मारकेटिंग के द्वारा अपने सम्पर्कों को बढाकर लगातार अपनी प्रोग्रेस को करता चला जायेगा। उसकी शरीर की बनावट और शरीर से किये जाने वाले कार्यों के अन्दर अपनी पहिचान को बनाने से भी कोई नही रोक सकता है,अक्सर इस राहु के द्वारा व्यक्ति के अन्दर एक्टिंग करने और अपने को प्रदर्शित करने की कला का भी खूब ज्ञान होगा। इस प्रकार के जातकों को अगर कस्टमर बनाने के लिये नियुक्त कर दिया जाये तो वह अपनी कला से लगातार कस्टमर बनाता चला जायेगा। यह राहु खुद के द्वारा धन को इकट्ठा करने के लिये भी माना जाता है,जातक अपने प्रदर्शन के द्वारा और जोखिम आदि के कार्यों को करने के बाद धन के अम्बार को लगाना शुरु कर देगा। राहु स्टोर का कारक है इस राशि का राहु स्टोर सम्बन्धी कामो को बहुत अच्छी तरह से कर सकता है,नाच गाने और फ़ोटो आदि के कार्यों में मन को लगाने के लिये भी माना जाता है,इस राशि का राहु तीसरे भाव मे है तो जातक के अन्दर फ़ीजियोथेरेपिस्ट के काम भी आसानी से कर सकता है। अगर इस भाव की राशि वाले व्यक्ति को रेसेप्सनिस्ट की जगह पर नियुक्त कर दिया जाये तो वह पूरी आफ़िस या सन्स्थान के कार्यों लोगों और आने जाने वालों को बडी अच्छी तरह से सम्भाल सकता है।


रविवार, 20 मार्च 2011

दूसरा राहु कुटुम्ब और माया

जातक की माता के बाद जातक का पाला अपने कुटुम्ब से पडता है,जातक को अमुक खानदान अमुक परिवार अमुक गरीब अमुक अमीर का पुत्र समझ कर लोग उसके लिये अपनी अपनी बातें करते है। कुन्डली के अनुसार राहु जितना बलवान होता है उतना ही बल जातक को राहु देता है,राहु अगर खराब राशि में है तो खराब तरह की और अच्छी राशि में है तो अच्छी तरह की प्रसिद्धि देने के लिये अपना फ़ल प्रदान करता है। अगर दूसरे भाव में वृश्चिक राशि है और राहु पर नीच का मंगल अपना असर दे रहा है तो जातक को कसाई के काम करने जरूरी हो जायेंगे उसके कुटुम्ब को कसाई की श्रेणी में लाना कोई अतिश्योक्ति नही होगी। जरूरी नही है कि वह किसी को कसाई की तरह से ही काटे,वह अपने अनुसार धन से कपट से डकैती से किसी कार्य को जटिल बनाकर काटने से बाज नही आयेगा।
वह या तो माया का पर्दा सबकी आंखों पर डालकर अपने कामो को करेगा या फ़िर अपने कुटुम्ब का बल लेकर अपने कार्यों को करेगा। उसे संगठित होने की अभूतपूर्व क्षमता का कारण प्रस्तुत करना आता होगा। वह अपना कार्य अपनी आवश्यकता की पूर्ति अपने अनुसार ही माया या अन्य प्रकार के पारिवारिक बल लेकर कर ही लेगा। दूसरे राहु के लिये यह भी माना जाता है कि या तो जातक अपने धन और परिवार का बल लेकर चलेगा साथ ही राहु की तीसरी नजर चौथे भाव पर होने से वह अपने मन के अन्दर किसी के प्रति भी विश्वास लेकर नही चलेगा यानी सभी पर अपनी आशंका को व्यक्त करेगा उसे अपने दिमाग के अनुसार ही चलना आता होगा इसके बाद पन्चम द्रिष्टि छठे भाव मे होने से वह अपने अनुसार चोरी से छलकपट से और गुप्त नीति से अपने कार्य को पलक झपकते ही पूरा करेगा,सप्तम नजर अष्टम द्रिष्टि पर होने से उसके अन्दर जादुई शक्तियों का बोलबाला हो जायेगा वह अपने को तंत्र मंत्र या अजीब गरीब विद्याओं से पूर्ण कर लेगा अथवा वह अपने अनुसार अपने आसपास के माहौल में अपने जानकार लोगों में इतनी दहशत फ़ैला कर रखेगा कि लोग उसके नाम से ही कांपने लगेंगे,अथवा वह अपनी नीतियों को अपने माया वाले जाल से पूरा करने की हिम्मत रखने के लिये माना जायेगा। राहु की नवम नजर कार्य भाव पर होने से जातक कभी तो भूत की तरह से काम करता हुआ नजर आयेगा या फ़िर बिलकुल आलसी होकर एक कोने में पडा हुआ नजर आयेगा,वह जन्म लेने के बाद से ही अपने पिता के लिये एक अभिशाप बनकर आयेगा और पिता या तो आफ़तों में जूझ रहे होंगे या फ़िर जातक के बचपन में ही नकारा होकर पडे रह गये होंगे। दूसरा राहु कुटुम्ब की सहायतायें भी देने के लिये माना जाता है चाहे कुटुम्ब से जातक कितनी ही दुश्मनी पाल कर बैठ जाये लेकिन जैसे ही जातक पर कोई मुशीबत आयेगी वह राहु अपने अनुसार सभी को सहायता के लिये सामने लाकर खडा कर देगा।

शनिवार, 19 मार्च 2011

पहला राहु आंचल की छाया

हर मनुष्य के लिये राहु कितना फ़लदायी है यह अन्दाज तभी लगाया जा सकता है जब बच्चा अपनी माता की गोद में आराम से आंचल की छाया में माता के वातसल्य को प्राप्त कर रहा होता है। माता उसके बालों को सहलाती है,किसी प्रकार के कष्ट के समय उसे पुचकारती है और जब कोई कष्ट असहनीय होता है तो माता बच्चे के साथ अपनी आंसुओं की लडी को भी बहाती है। उसे अपनी भूख प्यास की तकलीफ़ नही होती है वह अपनी पीडा को भूल जाती है लेकिन अपने बच्चे के लिये कोई भी तकलीफ़ सहन करने के लिये तैयार होती है। बच्चे को भी किसी प्रकार की पीडा या भय के सताने पर उसे लाखों लोगों के होने पर भी केवल अपनी माता की छवि ही याद रहती है वह अपनी माता को अपनी अबोध चिल्लाहट से कातर स्वर में रोने से बुलाने में सक्षम होती है। माता भले ही कमजोर है माता भले ही उसे दुख से दूर नही कर सकती है लेकिन फ़िर भी माता पर बच्चे को पूरा भरोसा होता है। माता उसके लिये सर्दी में अपने आंचल के अलावा अपने सीने से लगाकर सोती है गर्मी के दिनो में माता उसे अपने आंचल की हवा से ठंडक देने की कोशिश करती है,बरसात के समय में अपने सीने में छुपाकर खुद को भिगाकर बच्चे को बरसात के पानी से बचाती है।
यह भाव बिना राहु के नही प्राप्त नही हो सकता है,राहु का कार्य  भावानुसार अपनी अपनी योजना से फ़ल देने के लिये माना जाता है।राहु को धुन मे मस्त रहने वाला भी मानते है,जब व्यक्ति को अपनी धुन लगती है तो उसे दुनियादारी से कोई मतलब नही होता है,वह अपने में ही मस्त रहता है। माता बच्चे के पालन पोषण में बच्चे के भविष्य के प्रति ही धुन लगाये रहती है और जब तक वह अपने को सम्भालने के लिये काबिल नही हो जाता है माता को उसके प्रति चिन्ता करना जरूरी होता है। बच्चा अगर स्कूल गया है तो माता को उसके स्कूल से घर न आजाने और उसके द्वारा अपनी कुशल क्षेम को सही नही बता देने तक वह बैचेन रहती है,कितनी ही बडी सुविधा बच्चे को क्यों न दे दी जाये,माता बच्चे को अपनी आंखो से नही देख ले और अपने मन से समझ नही ले तब तक उसे चैन नही आता है। जो लोग अपने बच्चे को होस्टल आदि में शुरु में ही शिक्षा आदि के लिये डाल देते है उनके घर में एक अजीब बेचैनी हमेशा बनी रहती है,अक्सर इसी प्रकार के परिवारों में क्लेश होता ही रहता है,पति के ऊपर पत्नी का हावी होना भी इसी तरह के कारणों में माना जाता है।

राहु को छुपी शक्ति के मामले में जाना जाता है,राहु अपने प्रभाव से जातक के जीवन में उन शक्तियों को भर देता है जिनकी कभी आशा नही की जा सकती है। अक्सर बच्चे के कष्ट के समय माता के अंग फ़डकने की बात भी कही जाती है,माता को बच्चे के कष्ट का आभास पहले ही हो जाता है या बच्चा कहीं दूर होता है और किसी कष्ट में होता है तो माता को बेचैनी हो जाती है। राहु सूर्य के साथ मिलकर पिता या पुत्र की औकात को असीमित विस्तार की तरफ़ बढाने के लिये माना जाता है,राहु के द्वारा चन्द्रमा का साथ होने पर माता को चिन्ता में जातक की प्रोग्रेस के लिये माना जाता है,राहु का मंगल के साथ मिलकर खून के अन्दर प्रेसर बनना माना जाता है,राहु का बुध के साथ मिलने से विस्तार का अन्त नही होता है राहु का गुरु के साथ मिलने से या तो ज्ञान की सीमा अनन्त हो जाती है या जातक को इतना नीचे गिरा देता है कि जातक की शक्ल को लोग नही देख सकते है,राहु का शुक्र के साथ मिलान होने से जातक के अन्दर इतनी कामुकता का उदय होना शुरु हो जाता है कि उसे सभी जवान और खूबशूरत दिखाई देने लगते है,शनि के साथ राहु मिलता है तो उन कार्यो को जातक के लिये देता है जिनसे साधारण आदमी अक्सर दूर रहने के लिये माना जाता है।